मैंने एक दिन ख़ुद को आईने में देखा
आईने ने कहा , तू है इक कठपुतली
जैसे कठपुतली को नचाते है अंगुलियों पर
तू कब तक नाचेगी, लोगों के डर पर
मैंने किया सवाल , आईने में खड़े उस इन्सान से,
मैं सही हूँ या हूँ ग़लत, बताना इत्मीनान से
आईने से आवाज़ आई, नहीं थी तू सही कभी
तुझे ख़ुद को है सँवारना, तो सँवारना है अभी
ये सोचते सोचते मेरी आँख लगी,
तभी मेरे मन की आँख खुली
ना दिखने वाली रस्सियों से बंधे है, ना जाने कितने ही इंसान
रहम करो तुम उन पर , मत करो परेशान
उन रस्सियों को तुम तोड़ दो ,
उनको उन्हीं के हाल पर छोड़ दो
जीने दो ज़िंदगी, उनको अपने ही अन्दाज़ से
उड़ने दो उन परिंदों को, खुले आसमान में
एक पल में आईना मुझे, कितना कुछ बता गया
‘अनुष्का’ को ज़िंदगी जीने की, नई राह दिखला गया ……
Anushka
VII B
SHIPS
Good
ReplyDeleteWell done dear
ReplyDeleteWell done
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteInner spectro....well done
ReplyDeleteWell Done Anushka. Proud on you. Nirankar Bless u always.💐
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