Monday, September 9, 2024

बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय

दूसरों में दोष निकालना मनुष्य का स्वभाव है। दूसरों की निंदा करने से बड़ा सुख और कोई नहीं समझा जाता। मनुष्य का अहंभाव बड़ा प्रबल होता है। वह अपने जैसा किसी दूसरे को नहीं समझता इसलिए अपने दोष नहीं देख पाता। अहंभाव के कारण लोग दूसरों की उन्नति से ईर्ष्या-भाव रखने लगते हैं। किसी को ख्याति मिलने लगे तो उससे घृणा करने लगते हैं। बजाय इसके कि उस जैसा बनने का प्रयत्न करें, उसमें दोष ढूँढ़ने लगते हैं। कोई किसी की पदोन्नति से घृणा करता है तो कोई किसी की धन-संपत्ति से। दूसरों के गुणों से आँखें मूँद लेने का मुख्य कारण आत्म-निरीक्षण का अभाव है। जो मनुष्य अपने दोष स्वीकार करता है उसी के निर्दोष बनने की संभावना है। अपने संबंध में बना हुआ उसका भ्रम टूट जाता है तथा उसे पता लगता है कि वह स्वयं बुराइयों की खान है। वास्तव में छोटी-छोटी करके असंख्य बुराइयाँ हममें छिपी होती हैं जिन्हें  नजदीक होकर यदि हम देखें तो चकित रह जाएँ। अपने दोषों को जानकर ही हम अपने आचरण में सुधार ला सकते हैं, पर अपने दोषों को जानना सहज नहीं है।


रचना वर्मा

2 comments:

*Expectations vs reality*

Expectations and reality are two entities that often collapse,leaving us disappointed, frustrated or even devastated. We all have Expectatio...