कठपुतलियों के अनेक भाव,
जो वह स्पष्ट न कर पाते दिन-रात
धागों से बंधे है हाथ-पांव
आज़ाद रहना चाहते है दिन-रात
कठपुतलियों के अनेक भाव।
कहते है धागें तोड़ो,
हम नाचेंगे और गाएँगे,
हर घर में होगी आज़ादी की बात,
कठपुतलियों के अनेक भाव।
हमें मेलो में नचाते है,
अनेक बातें बुलवाते है,
हम न कुछ कह पाते है,
पर अनेक भाव हमारे है।
सब कठपुतलियाँ बेबस है,
कब अपने पैरों पर चलेगी।
उस दिन तो होगी आज़ादी की बात,
कठपुतलियों के अनेक भाव।
दिया
सातवीं बी